खुदीराम बोस : जीवनी | Biography of Khudiram Bose in Hindi
Khudiram Bose in Hindi
भारतीय स्वाधीनता संग्राम की क्रांतिकारी धारा में त्याग और बलिदान का जज्बा पैदा करने वाले वीर सेनानी खुदीराम बोस महज १8 साल की उम्र में देश के लिए फांसी के फंदे पर हंसते-हंसते झूल गए और क्रांतिकारियों के लिये वह अनुकरणीय हो गए। उनकी शहादत ने हिंदुस्तानियों में आजादी की जो ललक पैदा की उससे स्वाधीनता आंदोलन को नया बल मिला।
भारत के इस वीर सपूत की निडरता, वीरता और शहादत से बंगाल के जुलाहे इतने प्रभावित हुए कि वे खुदीराम बोस के नाम से एक खास किस्म की धोती बुनने लगे। खुदीराम बोस इतिहास में हमेशा एक “अग्नि पुरुष” के नाम से जाने जाते हैं। जब-जब भारतीय आज़ादी के संघर्ष की बात की जाएगी तब-तब खुदीराम बोस का नाम गर्व से लिया जाएगा।
खुदीराम बोस जी का जीवन परिचय | Khudiram Bose ki Jeewani in Hindi
मजबूत इरादे और वादे के शहंशाह स्वतंत्रता संग्राम के अमर सिपाही खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले में हुआ था। खुदीराम बोस जैसे होनहार क्रांतिकारी को जन्म देने वाली मां का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी और पिता का नाम त्रैलोक्यनाथ बोस था।
बालक खुदीराम के मन में देश को आजाद कराने की ऐसी लगन लगी कि नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और स्वदेशी आन्दोलन में कूद पड़े।
खुदीराम बोसे जी ने एक बार कहा था कि :
” क्या गुलामी से बड़ी और भद्दी कोई दूसरी बीमारी हो सकती है ? “
खुदीराम बोस 18 साल की उम्र में इसलिए शहीद हुए क्योंकि उन्होंने एक स्वतंत्र और समग्र भारत का सपना देखा था। इनका नाम खुदीराम पड़ने के पीछे भी एक दिलचस्प किस्सा है। कहा जाता है कि उनके जन्म के बाद उनके माता-पिता बेहद डरे हुए थे। डर का कारण यह था कि वह खुदीराम बोस से पहले अपने दो बेटों को बीमारी की वजह से छोटी उम्र में ही खो चुके थे। उनके पिता को डर था कि कहीं खुदीराम बोस की मृत्यु भी ऐसे ही ना हो जाए, इसलिए उन्होंने तय किया कि वह उन्हें अपनी ही बेटी को तीन मुट्ठी चावल में बेच देंगे। यह एक टोटका था ताकि खुदीराम बोस को कुछ ना हो। उस समय मिदनापुर में चावल के लिए “खुदी” शब्द का प्रयोग होता था। “खुदी” का अर्थ “चावल” होता था इसलिए उनका नाम खुदीराम बोस रखा गया। केवल 6 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया था और उनके पढ़ाई लिखाई का जिम्मा उनकी बहन ने उठाया।
Biography of Khudiram Bose in Hindi
Contribution of Khudiram Bose in Freedom Movement | खुदीराम बोस का स्वाधीनता आंदोलन में योगदान
जब वह नवीं कक्षा में थे तब उन्होंने सन 1905 में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ एक क्रांतिकारी संगठन “युगांतर पार्टी” में शामिल होने का फैसला किया। और देश की आजादी के लिए उन्होंने अपनी पढ़ाई भी बीच में छोड़ दी। उस समय अंग्रेजी सरकार ने बंगाल विभाजन का फैसला किया और इस फैसले के विरोध में बड़े पैमाने पर आंदोलन चल रहे थे। जिसके तहत विदेशी सामानों की होली जलाई जाती थी अर्थात विदेशी सामानों का बहिष्कार किया जाता था।
आजादी के बाद भले ही अखबारों की कलम नेताओं के आगे झुकने लगी थी, लेकिन उस जमाने में अख़बार लोगों के मन में क्रांति की आग पैदा किया करते थे। हमारी आजादी की लड़ाई में अखबारों की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी। खुदीराम बोस और उनके दूसरे क्रांतिकारी साथी अकसर अंग्रेजी अफसरों से छिपकर एक जगह इकठ्ठा हुआ करते थे और यह पढ़ा करते थे कि आज अखबारों में उनके बारे में क्या लिखा है।
उस समय बंगाल के महान दार्शनिक अरबिंदो घोष “वंदे मातरम” नाम के अखबार में विदेशी सामान की होली जलाने की खबरें प्रमुखता से छाप रहे थे। और यह खबरें अंग्रेजो के खिलाफ लोगों को एकजुट करने का काम करती थी। लोगों को यह पढ़कर बड़ा आनंद आता था और इससे राष्ट्रीयता और एकता की भावना पैदा होती थी।
हालांकि लॉर्ड कर्जन ने जब बंगाल का विभाजन किया तो उसके विरोध में सड़कों पर उतरे अनेकों भारतीयों को उस समय के कलकत्ता के मॅजिस्ट्रेट / ब्रिटिश जज डग्लस किंग्जफोर्ड ने इस आंदोलन के दौरान क्रांतिकारियों पर खूब अत्याचार किए एवं उन्हें क्रूर दण्ड दिया। किंग्जफोर्ड ने आंदोलन करने वाले क्रांतिकारियों को कोड़े से पिटवाने से लेकर उन्हें कई तरह की कठोर सजा सुनाई और इसी के बाद क्रांतिकारियों ने तय किया कि वह डग्लस किंग्जफोर्ड की हत्या करके उससे बदला लेंगे।
“युगान्तर” समिति कि एक गुप्त बैठक में किंग्जफोर्ड को मारने का निर्णय हुआ। इस कार्य हेतु खुदीराम तथा प्रफुल्लकुमार चाकी का चयन किया गया। खुदीराम को एक बम और पिस्तौल दी गयी। प्रफुल्लकुमार को भी एक पिस्तौल दी गयी।
30 अप्रैल की शाम बिहार के मुजफ्फरपुर में खुदीराम बोस और क्रन्तिकारी प्रफुल्ल कुमार चाकी ने एक बग्गी पर बम फेंक कर हमला किया और वहां से फरार हो गए। उन्हें लगा कि उन्होंने डग्लस किंग्जफोर्ड को मार दिया लेकिन बाद में पता चला कि इस बग्गी में डग्लस किंग्जफोर्ड की जगह ब्रिटेन के एक बैरिस्टर प्रिंगल कैनेडी की पत्नी और उनकी बेटी बैठी हुई थी, जिनकी उसमें मौत हो गई। जिसके बाद खुदीराम बोस को गिरफ्तार कर लिया गया।
हैरानी की बात यह है कि इसी देश के कुछ लोगों ने अंग्रेज अफसरों को यह बताया था कि खुदीराम बोस किस रास्ते से मिदनापुर पहुंचने की कोशिश कर रहे थे। यानी उस समय भी हमारे देश में कायर मौजूद थे। उस समय भी हमारे देश में ऐसे लोग मौजूद थे जो अंग्रेजों के साथ मिल गए थे और उन्होंने हमारे क्रांतिकारियों के साथ धोखेबाजी की। मिदनापुर के रास्ते में ही खुदीराम बोस को गिरफ्तार कर लिया गया। प्रफुल्लकुमार चाकी ने खुद को गोली मारकर अपने आपको शहादत दे दी।
उस समय भी हमारे देश में ऐसे लोग थे, जो खाते तो इस देश का थे लेकिन वफादारी ब्रिटिश सरकार के साथ करते थे।
13 जून 1908 में जब इस मामले में खुदीराम बोस को फांसी की सजा सुनाई गई तब 18 साल के खुदीराम बोस के चेहरे पर एक भी शिकन तक नहीं थी। और सजा सुनाने वाले जज भी इस बात से हैरान थे। जज और उनके बीच एक ऐसा संवाद हुआ जो कई वर्षों तक याद रखा गया।
फांसी की सजा सुनाने के बाद जज ने खुदीराम बोस से पूछा कि क्या तुम्हें फैसला समझ आ चुका है?
इस पर खुदीराम ने जवाब दिया हां, लेकिन मैं कुछ कहना चाहता हूं।
लेकिन जज ने कहा कि मेरे पास इसके लिए वक्त नहीं है।
जज की इस बात पर खुदीराम बोस के आखिरी शब्द यह थे कि :
अगर उन्हें मौका दिया जाए तो वह यह बता सकते हैं कि बम कैसे बनाया गया था ताकि बाकी क्रांतिकारी भी आजादी की लड़ाई को कमजोर ना होने दें और हर घर में बम बनाकर बहरे अंग्रेजों को आजादी का शोर सुनाया जा सके।
खुदीराम बोस के बारे में एक और बात बहुत कम लोग जानते हैं कि उनके समर्थन में बाल गंगाधर तिलक जी ने भी बहुत से लेख लिखे थे और इसके लिए बाल गंगाधर तिलक जी को वर्ष 1908 से लेकर 1914 तक राजद्रोह के मामले में बर्मा के जेल में 6 साल तक रखा गया।
उस समय कोर्ट में बाल गंगाधर तिलक जी का केस मोहम्मद अली जिन्ना ने लड़ा था, जो बाद में भारत के विभाजन का कारण बने। जिन्होंने पाकिस्तान का निर्माण करवाया।
11 अगस्त 1908 को ब्रिटिश हुकूमत ने खुदीराम बोस को मुजफ्फरपुर जेल में फांसी दे दी। जीवन के मात्र 1८वें वर्ष में हाथ में भगवद गीता लेकर हँसते-हँसते फाँसी के फन्दे पर चढ़कर इतिहास रच दिया।
उनकी शहादत के बाद बंगाल में कई दिनों तक स्कूल बंद रहे। वह लोगों में इतने लोकप्रिय हुए कि उस समय नौजवानों की धोती और कमीज पर खुदीराम लिखा होता था, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि आज भारत के लोग इस महान युवा क्रांतिकारी के बलिदान को भूल चुके हैं और कई लोगों को तो इनके बारे में कुछ पता तक नहीं है।
Khudiram Bose ki Jeewani in Hindi
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